वो चढ़ता है झाड़ तो चढ़ने दो, मेरी मंजिल खुला आकाश है
यूं तो लेखन जगत से जुड़े अरसा बीत चुका है, शुरुवात भी दिलचस्ब रही, कुल दो पंक्तियों में बयां करूँ तो…
जज़्बात जब रह-रहकर मचलने लगे, बाहर आने की जद्दोजहद करने लगे, हमने भी खुद को कैद से आज़ाद कर दिया, लुकी-छुपी सी ज़िंदगी को सरेआम कर दिया.
मतलब बात इतनी सी थी …
ज़िंदगी के तजुर्बों ने हाथों में कलम थमा दी, दुनिया वालों ने कलम चलाना सिखा दी.
अपनी कलम से कहानियां, कविताएं, लेख, व्यंग्ग बहुत लिखे है, बस इसी शौक के चलते आकशवाणी से भी जुड़ गई और कई कहानियां और व्यंग्ग स्वयं आपके सामने प्रस्तुत किए. जिनका प्रसारण सफलता पूर्वक हुआ और आपकी सराहना की पात्र बनी. बहुत जल्द आपके सामने मेरा पहला उपन्यास भी आने वाला है.
सोशल मीडिया पर भी सक्रिय भूमिका निभाती हूँ, फ़ेसबुक पेज के सात हज़ार से भी ज़्यादा फॉलोअर्स हैं, जिसके लिए आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया अदा करना चाहती हूँ.
धीरे-धीरे ब्लॉग की ओर रुझान बना,और छोटी सी पहल की. इस ब्लॉग के माध्यम से ज़िंदगी के हर रंग को कैनवास पर बखूबी से उतारने की कोशिश की है . देशप्रेम, प्यार, रोमांस, फ़र्ज़, संघर्ष आदि सभी रंगों का सामंजस्य ब्लॉग की विशेषता हैं. बस सभी का प्यार और आशीर्वाद चाहिए 🙏
VERY NICE
Thanks for appreciatation
सफ़लता केे लिए आपका लगातार पोस्ट पब्लिश करते रहना जरूरी है …कुसुम जी ….आपके ब्लॉग पे आज आना हुआ , , आप महिला सशक्तीकरण का मिसाल बने …इसी आशा केे साथ …awrighting.com
बहुत बहुत शुक्रिया