तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने 1920 में इंग्लैंड में इंडियन सिविल सर्विस एग्जामिनेशन क्लियर किया था। लेकिन जब उन्होंने आजादी के लिए भारत की लड़ाई के बारे में सुना तो अप्रैल, 1921 को जॉब छोड़ दी थी।
भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महान नायक का त्यागपत्र
(सौजन्य: इंटरनेट)
नेताजी सुभाषचन्द्र बोस जैसे बालक ही महान् बनते हैं
उनसे जुड़ी कुछ बातें है जो मैं आप सबके साथ साझा कर रहा हूँ
एक बार की बात है अपने पुत्र के पढाईवाले कमरे में जाने पर माँ ने देखा कि कोने में रखी किताबों की आलमारी पर चींटियों की कतार चढ रही है । आलमारी खोलकर देखा तो पुस्तकों के पीछे दो रोटियाँ मिलीं ।
जब बच्चा स्कूल से घर आया तो माँ ने पूछा : तुम्हारी पुस्तकों के पीछे ये रोटियाँ कहाँ से आयी ?
लडके ने माँ को आदरपूर्वक उत्तर दिया : माँ ! हमारे घर के सामने एक बूढी भिखारिन आती है । मैं अपने भोजन में से रोज दो रोटियाँ बचाकर उसे देता हूँ । वह कल नहीं आयी थी, इसलिए ये रोटियाँ उसे नहीं दे पाया ।
बालक की बात सुनकर माँ का हृदय भर आया और उसे अपने सीने से लगा लिया ।
भारतमाता का यह नन्हा सपूत आगे चलकर नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के नाम से प्रख्यात हुआ । बचपन में बूढी भिखारिन की सेवा करनेवाले यही महान स्वतंत्रता सेनानी मातृभूमि के लिए प्राणों की आहूति देकर करोडों भारतवासियों के हृदय पर अपना नाम सुवर्ण अक्षरों में लिख गये ।
सच ही कहते हैं : होनहार बिरवान के होत चीकने पात ।