उपन्यास – मेघना एक अलबेली सी पहेली
लेखिका – कुसुम गोस्वामी जी
समीक्षा –
कुछ रोज पहले मेरी मुलाकात “मेघना” से हुई जो लेखिका कुसुम गोस्वामी जी द्वारा रचित एक बेहतरीन उपन्यास है शुरुआत करूंगी कि मेघना सिर्फ एक किताब नहीं है, मेघना हर वह लड़की है, यह वह स्त्री है जो सपने देखती है, जो कायदे या मर्यादाओं की परे जीना चाहती है, जो जीवन में कुछ करना चाहती है, ऐसी ही कई स्त्रियां हैं जिनसे हम रोजमर्रा कि जीवन में मिलते हैं और हर वो स्त्री है मेघना, सभी के भीतर व्याप्त है किसी न किसी रूप में मेघना, किसी की चंचलता में मेघना है, किसी की बहादुरी में मेघना, है किसी की बेबाकी में मेघना है, किसी की खूबसूरती में मेघना है, किसी की सादगी में मेघना है, किसी की मासूमियत में मेघना है, तो किसी की भावुकता में मेघना है, यही तो मेघना है हम सबके भीतर व्याप्त है मेघना….
कहानी बहुत खूबसूरत है अलग-अलग भागों में विभाजित है जहां हम अलग अलग रूप में मेघना से सरोकार करते हैं, उसकी अलग अलग खूबियों पर हमारी नजर जाती हैं, सबसे पहले तो मैं प्रशंसा करूंगी हर उस शीर्षक की जो लेखिका ने बहुत खूबसूरती से कहानी के मर्म को समझ कर या उस भाग की तह को समझ कर उसे दिया है, कहानी शुरू होती है एक ऐसी लड़की के परिचय से जो बेबाक है, बहादुर है, और अपने परिवार को अपने हृदय की अनंत गहराइयों से प्यार करती हैं, ऐसी लड़की जिसकी मां उस पर खुद से ज्यादा एतबार करती है किंतु फिर भी समाज के रंग ढंग को देखकर लीन चिंता में व्याप्त रहती है जो शायद हर रोज रोजमर्रा में देखने मिलता है, हमें बच्चियों का घर की पहुंचने के समय में थोड़ा सा भी आगे पीछे होना माताओं को मूलतः चिंता में डाल देता है कई अंदेशों को उनके मस्तिष्क में जन्म दिलवा जाता है एक और बहुत सामान्य जो अंश लगा मुझे किताब का वह था “कहानी ऑफिस ऑफिस” का एक ऐसा भाग जो हर वर्किंग वूमेन जिन्हें हम कह सकते हैं काम करने वाली स्त्रियां घर से बाहर जाने वाली, स्त्रियां रोज सहती हैं कई बार कह रही हैं, तो कई बार समाज के डर से चुप हैं, घूरती नजरें, शरीर पर रेंगती बेपरवाह नजरें, छोटे-मोटे तंज जो बहुत बेबाकी से सहकर्मियों या आसपास काम करने वालों की तरफ से हो जाते हैं जिन्हें टाल देना या उस परिस्थिति से तत्काल निकल जाना है शायद हर महिला अपनी समझदारी समझती है किंतु समस्या शायद यहीं से जन्म लेती है हम सहते हैं या कहे नजरअंदाज करते हैं और वह उसे बढ़ावा समझते हैं, खैर इसके अलावा भी कहानी कई अलग-अलग भागों में विभाजित है जहां कभी मेघना के लिए मयंक की एकतरफा सा सुंदर आकर्षण या एक तरफा प्रेम देखने मिलता है जिसकी अपनी सादगी, संयम व सुंदरता है। इसी खूबसूरती से कहानी आगे चलती है जहां मेघना जैसी बहादुर लड़की समाज की कई चुनौतियों का सामना कर बखूबी आगे बढ़ती हैं जिंदगी एक जंग में लेखिका ने मेघना न जाने कई ऐसी लड़कियों का बहुत खूबसूरती से वर्णन किया है, जो आगे बढ़ना ही सर्वोपरि समझती हैं समाज की लाग लपेट को कहीं पीछे छोड़ किंतु कब तक तब तक एक चिड़िया चंगुल से बचेगी जब बहेलिया बहुत तीव्र और तेज निशानीदार ऐसी ही एक चूक मेघना जैसी बहादुर लड़की पर भी भारी पड़ती है उसकी तमाम सावधानियों को दरकिनार कर देती हैं और उसके ही आसपास मौजूद दानव जो मानवीय देह में था वह अपनी नीचता की पराकाष्ठा पर आ जाता है, टूट जाती है वह लड़की जो खुद को कभी आसमान में अपना आसन जमाए देखती थी, इसी उहापोह में समाज की बंदिशों में वह भी घर जाना, चुप रहना जरूरी समझती हैं और अपने परिवार की जिम्मेदारियों का निर्वहन बखूबी करती है किंतु एक ऐसा द्वंद उसके भीतर जन्म लेता है जो उसे कतई चुप नहीं रहने देता वह अपनी मां व परिवार के साथ आवाज एक बुलंद तेज आवाज जिसे दबाने नाकाम कोशिश है कई बार विद्रोहियों ने की इसी खींचतान में “अभिमन्यु” जैसा खूबसूरत किरदार भी जन्म लेता है वो लेखिका की पंक्तियां “एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा” को साकार कर देता है वह जो सच्चाई व पारदर्शिता से प्रेम की कसौटी पर खरा उतरता है, प्रेम को अलग रंग में निखारता है, कहते हैं सच धीमा हो सकता है पर चुप नहीं और यही कहावत अपना मूल रूप पेश कर दी है अपने अगले शीर्षक में “डगर कठिन है” में की ‘बुराई या झूठ सौ कदम लंबे क्यों ना हो सच का एक कदम भी उनसे कहीं ज्यादा लंबा और भारी होता है’ खैर मेघना कब चुप बैठी थी जंग लंबी थी पर अंत तो निश्चित ही और अब तो उसका “दिल भी चुपके से ही सही मिल चुका था” एक शानदार व्यक्तित्व के साथ जो था अभिमन्यु दोनों ने मिलकर साहस दिखाया और मेघना की हिम्मत और सफल होती गई लेकिन यह कलयुग है, कहानी के सबसे मार्मिक या भावुक क्षण थे “और वो टूट गई” शीर्षक के जब तमाम सही कोशिशों और दिशा के बाद भी वह पहाड़ सी सबल स्त्री कंकडो के भांति बिखरी और निर्बल प्रतीत हुई एक चोट खाई शेरनी की तरह, इसके बाद कहानी ने कई दिलचस्प मोड़ लिए जो पाठकों को पन्ने पलटने पर मजबूर करता रहा, इस बात का श्रेय लेखिका कुसुम जी कि कलम और बेहतरीन शब्द चुनाव को जाता है, कई ऊंचे नीचे मोड के बाद मेघना की कहानी या उसकी यात्रा सही मंजिल तक पहुंची जहां सत्य बुलंदियों के साथ विजय हुआ…..
बहुत खूबसूरत चित्रण हैं किरदारों का, शब्दों का चुनाव लाजवाब है, वात्सल्य रस, श्रंगार रस, वीर रस का बेहतरीन प्रयोग है और अंत में हालात या परिस्थितियां भी वही हैं जिनसे एक सामान्य नागरिक हर रोज गुजरता है, इस किताब को ना सिर्फ पढ़ना चाहिए बल्कि साझा करना चाहिए बहन, पत्नी, बेटी या दोस्तों के साथ और “मेघना” की तरह ही हमें भी अपने जीवन में हर विषम परिस्थिति के बाद निरंतरता को बनाए रखना चाहिए यही सीख देती है लेखिका “कुसुम गोस्वामी” जी की कलम
सहृदय धन्यवाद