— पुस्तक समीक्षा —
उपन्यास – मेघना
लेखिका – कुसुम गोस्वामी
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हमारे हाथों में एक अनमोल तोहफ़ा है आज जिसे बेहद ख़ूबसूरत नीले लिबास में हमने पाया। इस तोहफ़े का नाम है “मेघना”।
कोई उपन्यास गहन चिंतन और मनन के बाद ही अपना स्वरूप ग्रहण करता है।मेघना नामक यह उपन्यास हमें एक विराट कैनवास की तरह लगा।
मेघना की जीवन गाथा अत्यंत मार्मिक है।
उपन्यास में मेघना मुख्य पात्र है साथ हैं माँ योगिता , मैना सी चहकती छोटी बहन नैना ।
मेघना नारी शक्ति का प्रतीक जो भाटिया के कुचक्र में घिर कर एक दिन उसके बलात्कार का शिकार हो जाती है।
फिर कैसे वह अपने अपमान के विरुद्ध खड़ी होती है और अंततः विजयी होती है मेघना का साथ देता है इस युद्ध मे अभिमन्यु ।
उपन्यास की स्वाभाविकता के लिए वातावरण की सत्यता वांछनीय तत्व है। वास्तविकता से विलग हो कर न तो उपन्यास की कथा वस्तु का निर्माण हो सकता है और न पात्रों की उत्तम प्रस्तुति।
कुसुम गोस्वामी ने सत्य को सजीव किया है अपनी लेखनी से यथा कुछ अंश उपन्यास से –
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घड़ी के भागते काँटे कोई भी थाम ले किंतु वक़्त के पहिए को रोकने का बूता है किस में ? वो घूमता है साथ चक्करघिन्नी सी नाचती हैं ज़िम्मेदारियों का पुलंदा उठाए ज़िन्दगानियाँ ।
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किसी लड़की के लिए ऐसे व्यक्ति का सामना करना बड़ा मुश्किल होता है जो नज़रों से बलात्कार करने की कला में दक्ष हो।
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बलात्कार एक ऐसी मानसिक और शारीरिक पीड़ा है जो मज़बूत से मज़बूत लड़की को भी तोड़ देती है। इसका दोषी हमारा समाज ही है ।पीड़िता को जिस हीन दृष्टि से देखा जाता है कि उसे यह सब सह पाना असंभव हो जाता है।
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मेघना को पढ़ते हुए हमें कभी यह लग रहा था कि हम कोई बेहतरीन फ़िल्म देख रहे हैं या फिर कभी ऐसा लग रहा था कि हम कोई धारावाहिक tv सीरियल देख रहे हैं। एक एक चित्र सजीवता लिए । पात्रों के संवाद और कथ्य के साथ साथ उनके लिबास भी लहरा रहे थे आँखों के सामने जिन्हें समय समय पर विभिन्न रंगों में प्रस्तुत किया है “कुसुम गोस्वामी” की जादुई लेखनी ने। जैसे देखिये यह दृश्य-
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गोल्डन सिल्क सलवार में मिल्क सी उसकी छाया यूँ निखर रही थी जैसे सुनहरी रात में दूधिया ताजमहल ।
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सहसा दोनों की नजरें टकराईं।आस पास जैसे बर्फ़ की सफेद चादर उसमें वो भी समा गए।
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कुसुम गोस्वामी का उपन्यास “मेघना” यथार्थ की धरती पर लिखा एक महा काव्य लगता है ।
उपन्यास की कथा वस्तु में इतिहास कई किरदार बन कर उभरा है। स्वार्थी और परोपकारी किरदार भी है जिन्हें वर्तमान और अतीत के मध्य प्रस्तुत किया है एक कुशल सूत्राधार बन कर ” कुसुम गोस्वामी ” ने। सत्य की सुंदर और हृदय स्पर्शी अभिव्यक्ति हैं पग पग पर यथा कुछ पंक्तियाँ ” मेघना ” से –
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जब सूरज अलसाया , थका सा सुस्ताने परदेश जाता है चाँद ही घनघोर अँधेरों में राह दिखाता है ।
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क़िस्मत भी कैसे मोड़ पर ला कर खड़ा कर देती है ।उन्हीं गलियों से गुज़रना है जहां का रुख करने के बारे में कभी सोचा ही नहीं था।
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उपन्यास के अंतर्गत ” मेघना” की अदालती लड़ाई में अदालत का सत्य और गीता की झूठी कसमें खाने वालों पर करारा व्यंग्य और स्पष्टवादिता अत्यंत प्रशंसनीय हैं। यथा देखे कुछ पंक्तियाँ –
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गीता भी उसका हाथ लगने से मन ही मन रोई जैसे माँ सीता अपहरण के समय रावण का हाथ लगने से कराही थीं।
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आख़िर कोई शरीफ़ लड़की अदालत जाने से क्यों डरती है ।उसके सच पर झूठ की कालिख़ पोती जाती है
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आज के ज़माने में सच की परिभाषा बदल गई है । सच वह नहीं है जो दिखे सच वह है जो दिखाया जाए।
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एक बेहतरीन फ़िल्म की तरह ” मेघना” के अंतर्गत शीर्षक भी कुछ सुरीले गीतों से सजे हैं यथा –
एक लड़की को देखा तो ~~
दो दिल मिल रहे हैं मगर चुपके चुपके
ऐसी वैसी ना समझ सजना
डोली सजा के रखना ।इत्यादि।
स्थान स्थान पर टी वी सीरियलों के डायलॉग भी बहुत खूबसूरती से कथ्य और पात्रों के संवाद में समाहित हैं ।
हमे लगता है फिल्मों , मधुर गीतों और बेहतरीन tv सीरियल से आनंद प्राप्त करना कुसुम गोस्वामी का शौक़ है।
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अंत मे हम हार्दिक आभार प्रकट करते हैं ” कुसुम गोस्वामी ” जी का जिन्होंने अपनी यह अनमोल कृति हमें उपहार स्वरूप प्रदान किया।आपके उज्ज्वल भविष्य की हार्दिक शुभ कामनाएं। आपकीं लेखनी यूँ ही निरन्तर सृजन करती रहे।







SUMAN YUSUFPURI
